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"जल विरह / संतोष मायामोहन" के अवतरणों में अंतर

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तो सूक मरे
 
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'''अनुवाद : नीरज दइया'''
 
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05:56, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण

जब गिरती है बूंद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
गर ना बरसे
तो सूक मरे
विरह ।

अनुवाद : नीरज दइया