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"कुछ तो करो / अनिरुद्ध नीरव" के अवतरणों में अंतर

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09:57, 3 दिसम्बर 2010 का अवतरण

पेड़ पिंजर बन गया
कुछ तो करो
वक़्त कोटर खन गया
कुछ तो करो

     भुंज गया तन
     शाख भी
       तड़के निरन्तर
     देह का
     सारा तरल
       कड़के निरन्तर

लो कुल्हाड़ा तन गया
कुछ तो करो

       गिद्ध बैठा
     शाख पर
       असगुन उगाए
     और नीचे
     दीमकों ने
       गढ़ बनाए

क्रोड़ विषधर जन गया
कुछ तो करो

     पीड़ पपड़ाई हुई
     काली पड़ी है
     एक पत्ता
     शेष है
     जाली पड़ी है

चैत आ कर चन गया
कुछ तो करो ।