भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं भी हँसूँ / वरिगोंड सत्य सुरेखा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=वरिगोंड सत्य सुरेखा |संग्रह= }} [[Category:तेलुगु भाष…)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:16, 6 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: वरिगोंड सत्य सुरेखा  » मैं भी हँसूँ

देख कर मुझे हँसते हैं सभी
उन्हे देख डर लगता है
हँसते हैं इसलिये नहीं
पर यह सोच कर
कि हँसने वाले मेरी पीड़ा पहचानते नहीं !

चाँद अंधेरे में रहता है
डर नहीं लगता उसे ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

रात भर अकेला रहता है
उस का साथी क्या कोई नहीं ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

सदा आग उगलते सूरज को
ठंडक कहाँ से मिल पाती है ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

बिना रुके बहने वाले झरने की
थकान कौन मिटाता है ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

हम धरती माँ की गोद में बैठते हैं
पर वह माँ कहाँ बैठती है ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

घूमते पहिये पर न चल सकने वाले हम
घूमती धरती पर कैसे दौड़ रहे हैं ?
पूछूँ तो सब हँसते हैं ।

हमे चलाने वाले को
चलाने वाला कौन है ?
पूछूँ
तो ज़ोर ज़ोर से हँसते हैं
एक भी सवाल का जवाब न दे कर
हँसने वालों को देख कर
मैं क्या करूँ ?
बस , मैं भी हँस देती हूँ !

मूल तेलुगु से अनुवाद : आर० शांतासुंदरी