Last modified on 9 जुलाई 2011, at 01:51

ख़यालों में उनके समाये हैं हम / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:51, 9 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


ख़यालों में उनके समाये हैं हम
भले ही नज़र में पराये हैं हम

कभी इसको मुँह तक भरें तो सही
ये प्याला बहुत बार लाये हैं हम

हुआ क्या जो सब उठके जाने लगे
अभी बात भी कह न पाए हैं हम!

जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया
वही कह रहे, 'पीके आये हैं हम'

मसलती है पाँवों से दुनिया गुलाब
मगर अब हवाओं में छाये हैं हम