Last modified on 23 जुलाई 2011, at 01:49

कहिये तो कुछ कि काट लें दो दिन खुशी से हम / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:49, 23 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


कहिये तो कुछ कि काट लें दो दिन ख़ुशी से हम
घबरा गये हैं आपकी इस बेरुख़ी से हम

हर शख़्स आइना है हमारे ख़याल का
मिलते गले-गले हैं हरेक आदमी से हम

आयेगा कुछ नज़र तो कहेंगे पुकारकर
आँखें मिला रहे हैं अभी ज़िन्दगी से हम

आये भी लोग आपसे मिलकर चले गये
देखा किये हैं दूर खड़े अजनबी-से हम

रंगत किसीकी शोख़ निगाहों की है गुलाब
कह तो रहे है बात बड़ी सादगी से हम