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लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है / गुलाब खंडेलवाल


लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है!
हम तो प्यासे रहे पानी के, हमारा क्या है!

उनकी महफ़िल है, शराब उनकी है, प्याला उनका
हम तो दो घूँट चले पीके, हमारा क्या है!

उड़ रही है तेरे जूड़े की जो ख़ुशबू हर ओर
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है!

हँस के बहला भी लिया, रूठके तड़पा भी दिया
हम हैं मुहरे तेरी बाज़ी के, हमारा क्या है!

जब कहा उनसे, 'खिले आज तो होँठों पे गुलाब'
हँसके बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!