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कभी मेरी सुधि भी आयी है, / गुलाब खंडेलवाल

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कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!

क्यों मंगलपद रचे अनूठे
यदि विवाह-बंधन थे झूठे!
कैसे वे मुझसे यों रूठे
                झलक न दिखलायी है!
 
ज्यों ही शोध प्रिया की जानी
प्रभु ने लंका-जय की ठानी
सखि! मेरी तो करुण कहानी
                   घर-घर में छायी है
 
तन में भले भभूत रमायी
मन से क्यों मैं गयी भुलायी!
राम-कथा क्या मुझे न भायी
                 क्यों यह निठुरायी है!

कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!
 
मंगल-पद = तुलसीदास जी द्वारा रचे गये 'जानकी-मंगल' तथा 'पार्वती-मंगल'