Last modified on 7 फ़रवरी 2009, at 08:40

बोध / दिविक रमेश

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:40, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ओ मेरे युग-देवता!

क्षमा करना

यदि मैं प्रकट करता हूँ

तुम्हारे प्रति

अनास्था ।


क्योंकि

मेरे युग-राक्षस ने

तुम्हें विजित कर

सिखा दिया है जीना ।


अन्यथा मैं भी

बन जाता एक कड़ी

आत्महत्याओं की

श्रंखला की ।