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अपने पालक की आदी हो जाती है ततैया
उसकी जात ऎसी ही होती है, भइया
पर तेईस वर्षों से पिछले मैं मलंग
गिन रहा हूँ अपनी इस अख़्मातवा के डंक
(रचनाकाल :1930)
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अपने पालक की आदी हो जाती है ततैया
उसकी जात ऎसी ही होती है, भइया
पर तेईस वर्षों से पिछले मैं मलंग
गिन रहा हूँ अपनी इस अख़्मातवा के डंक
(रचनाकाल :1930)