Last modified on 29 जनवरी 2008, at 19:03

तीव्र आतप तप्त व्याकुल... / कालिदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 29 जनवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  तीव्र आतप तप्त व्याकुल...

तीव्र आतप तप्त व्याकुल आर्त्त हो महती तृषा से

शुष्कतालू हरिण चंचल भागते हैं वेग धारे

वनांतर में तोय का आभास होता दूर क्षण भर

नील अन्जन-सदृश नभ को वारि शंका में विगुर कर

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !