Last modified on 23 नवम्बर 2016, at 11:32

आकाशवाणी / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 23 नवम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात्रि के शीतल होंठ
करते उच्चरित एक शब्द
दुख का यह स्तम्भ
शब्द नहीं शिला
शिला नहीं छाया

मेरे वाष्पित होठों के
वास्तविक जल से आता
वाष्पित विचार
शब्द सत्य का
मेरी त्रुटियों का कारण

यदि यह मृत्यु है
तो केवल उसी के माध्यम से रहता हूँ मैं
यदि यह एकान्त है
तो बोलकर व्यतीत करता इसे मैं
है स्मृति यह
और मुझे कुछ भी याद नहीं

मुझे नहीं पता
क्या कहता यह
और मैं स्वयं भरोसा करता इस पर

कोई जी रहा है यह कैसे जानना
कोई जानता है यह कैसे भूलना
समय जो अधखुला रखता है पलकों को
और देखता है हमें, स्वयं को दिखाते हुए

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’