Last modified on 15 दिसम्बर 2022, at 17:23

बड़ी ग़ज़ल तो कहो पर सरल ज़बान रहे / डी .एम. मिश्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 15 दिसम्बर 2022 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़ी ग़ज़ल तो कहो पर सरल ज़बान रहे
सर उठाओ तो हथेली पे आसमान रहे

हज़ार मुश्किलें भी ज़िंदगी में आयेंगी
दुआ करो कि ख़ुदा हम पे मेहरबान रहे

न तो दौलत की तमन्ना मुझे न शोहरत की
ज़िन्दगी में जो कमाया है वो ईमान रहे

ख़ु़दा से माँगना हो कुछ तो यही मागूँगा
क़ब्र में जा के भी ज़िंदा मेरा इन्सान रहे

सिवा तुम्हारे और किसको ये जिम्मा सौंपू
मेरे जाने के बाद भी मेरा दीवान रहे