Last modified on 20 मई 2023, at 14:02

मिलने की उम्मीद / प्रशान्त विप्लवी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 20 मई 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मंगलेश डबराल के प्रति

उस रोज़ कृष्णा सोबती की अन्त्येष्टि थी
वे शायद वहीं से लौटकर आए थे
एन. एस. डी. के अहाते पर
एम. के. रैना के साथ सिगरेट लिए
वे हमारी तरफ़ बढ़ रहे थे
जब हम सुरेन्द्र वर्मा की वक्तृता सुनने
एक सभागार में जा रहे थे
मुझे महसूस हुआ कि वे पहली पंक्ति में बैठे हैं
और एम. के. रैना हमसे भी पीछे बैठे हैं
वे कुछ देर बाद वहाँ से उठकर चले गए
लेकिन उनसे पुनः मुलाक़ात की एक अजीब उम्मीद बनी रहती थी

पटना के आर ब्लॉक चौराहे पर
गाड़ियों का बेहद शोर था
सड़क किनारे जहां एक टुकड़ा अंधेरा बचा था
एक पान के ठिये पर कुछ ढूंढ़ते हुए
वे फिर दिख गए

दिल्ली और पटना पुस्तक मेलों में
वे अपने पाठकों से हमेशा घिरे दिखे
और मैं हर बार एक संकोच लिए
एक जिज्ञासा के उद्भेदन से चूकता गया

अब जब उनसे मिलने की कोई उम्मीद नहीं बची है
मेरी जिज्ञासा और भी तीव्र हो गई है
कि इस अमानवीय होते समय में
जब कोई फूहड़ बनकर कवियों पर हावी है
एक कवि अपनी कविता में किस कदर बचा रहता है
और उसकी लज्जा कैसे बची रहती है