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पृथ्वी के कक्ष में / वंशी माहेश्वरी

पहले की तरह नहीं होगा पहला
आज की नंगी आँखों में
उदित होती उम्मीद
कल की देह में अस्त हो जाएगी

सूर्य की आत्मा में
उदित होगा कल
पृथ्वी के कक्ष में चलेगी कख्शा
कक्षा के बाहर आते ही

आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान।