Last modified on 13 अप्रैल 2011, at 19:37

भज मन राम चरण सुखदाई / भजन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:37, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भज मन राम चरण सुखदाई ॥

जिन चरनन से निकलीं सुरसरि शंकर जटा समायी ।
जटा शन्करी नाम पड़्यो है त्रिभुवन तारन आयी ॥

शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक शेष सहस मुख गायी ।
तुलसीदास मारुतसुत की प्रभु निज मुख करत बढ़ाई ॥

सुरज मंगल सोम भृगु सुत बुध और गुरु वरदायक तेरो ।
राहु केतु की नाहिं गम्यता संग शनीचर होत हुचेरो ॥

दुष्ट दु:शासन विमल द्रौपदी चीर उतार कुमंतर प्रेरो ।
ताकी सहाय करी करुणानिधि बढ़ गये चीर के भार घनेरो ॥

जाकी सहाय करी करुणानिधि ताके जगत में भाग बढ़े रो ।
रघुवंशी संतन सुखदायी तुलसीदास चरनन को चेरो ॥