Last modified on 20 जुलाई 2009, at 18:56

इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में... / आसी ग़ाज़ीपुरी

इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम।
एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥

वोह मुसव्वर था कोई या आपका हुस्नेशबाब।
जिसने सूरत देख ली, इक पैकरे-तसवीर था॥

ऐ शबेगोर! वो बेताबि-ए-शब हाय फ़िराक़।
आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥