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मन घनश्याम हो गया / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'

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जब से मन घनश्याम हो गया
तन वृंदावन धाम हो गया

राधा के मुख से जो निकला
वही कृष्ण का नाम हो गया

तन की तपन मिली है तन को
जख़्मों में आराम हो गया

प्रीति रही बदनाम सदा से
लेकिन मेरा नाम हो गया

वे कालिख पीकर भी उजले
वक्त स्वयं बदनाम हो गया

तुम ने जिस क्षण छुआ दृष्टि से
सारा जग अभिराम हो गया

अल्प विराम मृत्यु को जग ने
समझा पूर्ण विराम हो गया

सब गुलाम राजा बन बैठे
राजा मगर गुलाम हो गया

तुम ने आँखों से क्या ढाली
'यायावर' ख़ैयाम हो गया