Last modified on 30 अगस्त 2010, at 20:21

किसकी तसल्ली पर अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे / संकल्प शर्मा

किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे,
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे

जब से गया वो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में,
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मिरे

आस के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद<ref>देखने को</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मिरे

पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
तुझ को ग़मगीं<ref>ग़मगीन,उदास </ref> भी कर सकते हैं वो सब असबाब<ref>कारण का बहुवचन </ref>

मिरे
शब्दार्थ
<references/>