भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक और दिन हुआ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 14 जनवरी 2011 का अवतरण ("एक और दिन हुआ / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
एक और दिन हुआ
तमाम दिन आदमी खोजता रहा एक और कुआँ
कुएँ में खोजता रहा पानी
अब पानीदार होने के लिए
मरते दम तक
जिंदगी का बोझ ढोने के लिए
एक और दिन हुआ
आदमी का मुँह फिर
हुआ धुआँ-धुआँ
रचनाकाल: १९-०६-१९७६, मद्रास