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खाना-आबादी / साहिर लुधियानवी

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(एक दोस्त की शादी पर)

तराने गूंज उठे हैं फजां में शादियानों के
हवा है इत्र-आगीं, ज़र्रा-ज़र्रा मुस्कुराता है

मगर दूर, एक अफसुर्दा मकां में सर्द बिस्तर पर
कोई दिल है की हर आहट पे यूँ ही चौंक जाता है

मेरी आँखों में आंसू आ गए नादीदा आँखों के
मेरे दिल में कोई ग़मगीन नग्मे सरसराता है

ये रस्मे-इन्किता-इ-अहदे-अल्फत, ये हवाते-नौ
मोहब्बत रो रही है और तमद्दुन मुस्कुराता है

ये शादी खाना-आबादी हो, मेरे मोहतरिम भाई
मुबारिक कह नहीं सकता मेरा दिल कांप जाता है