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वेलेन्टाइन डे / सिद्धेश्वर सिंह
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शोध के लायक है
एक अकेले दिन का इतिहास
और प्रतिशोध की संभावना से परिपूर्ण भूगोल
कैसा - किस तरह का हो
इस दिवस का नागरिकशास्त्र..
सब चुप्प
सब चौकन्ने
सब चकित
इस शामिलबाजे में
भीतर ही भीतर बज रहा है कोई राग ।
आज वेलेन्टाईन डे पर
अपने घोंसले से दूर स्मॄतियों में सहेज रहा हूँ
अपना चौका
अपने बासन
रोटी की गमक
तरकारी की तरावट
चूल्हे पर दिपदिप करती आग ।
और उसे.. उसे
जिसने आटे की तरह
गूँथ दिया है ख़ुद को चुपचाप
सुना है इसी दिन
पता चलता है संस्कॄति के पैमाने का ताप ।
मैं मूढ़ - मैं मूरख क्या जानूँ
प्यार है किस चिड़िया का नाम
आज वेलेन्टाईन डे पर
अपने घोंसले से दूर
तुम्हें याद करते हुए
क्या कर रहा हूँ - क्या पुण्य - क्या पाप !