भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक देह / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


त्वचा आवाज़ों को सुनती है

ख़ामोशी की अपनी एक देह है

पैरों में भी निवास करती हैं संवेदनाएँ

पीठ की अपनी ही एक कहानी है

अभी-अभी दबी हथेली का

धीरे-धीरे उभरना

कुछ कहता है देर तक


(1990 में रचित)