भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने से बाहर / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:30, 5 फ़रवरी 2011 का अवतरण
जब घाटी से देखा तो, सुंदर दिखता था
शिखर
अब शिखर पर हूँ तो ज़्यादा सुन्दर दिखती है घाटी
अपने से बाहर जहाँ से भी देखो
दूसरा ही सुन्दर दिखता है ।