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कारीगर / कन्हैया लाल सेठिया

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छांटणां पड़ै
हरेक रचणां सारू
परवाणै रा सबद
मुस ज्यावै काठा स्यूं
कंवळा पग,
ढीलां स्यूं
कोनी भर सकै डग
जका जाणै आ साच
बै उठासी ले‘र माप
कलम‘र कागद !