भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारी मनस्या / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:24, 19 अक्टूबर 2013 का अवतरण
जे हुवै
म्हारै सारै
कोनी फिरूं ले‘र
कलम री डांगड़ी
सिंझ्या सुवारै
रूळेड़ सबदां रै लारै,
मनैं लागै आछो
हल‘र खेत
पगां में पसरयोड़ी
सोनल रेत,
निपजाऊं
मोत्यां, मूंघी धान,
निरखूं च्यारूं मेर
फूल‘र पान,
सुणुं बैठ‘र
खेजड़ी री छयां
कमेड़यां री टमरक टूं
कबूतरा री गटर गूं
भोळा मिरघलां री छूं छूं
देखूं मोरियां नै
ताणतां छतरी
नाचती
बां रै सागै
हरी कचन दूबड़ी
करूं बाळपणै रै
साईनां नै चीत,
टेरूं अलगोजै में
कोई ओळ्यूं रो गीत
कोनी मनैं
छप्पण भोगां री भावण
रूच रूच‘र जीमूं
बाजरी रा सोगरा‘र
कांदां रो लगावण,
पीऊं गटगट
लोटड़ी रो ठरयोड़ो पाणी
हुवै रिंद रोही में
बांध्योड़ी ढ़ाणी,
मनैं लागै
कठखाणी
भाग दौड़ री जिनगानी
पण कद हुवै
किण रै ही मन री जाणी ?
लिख्यैड़ी करम में
तेली री घाणी !