भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीज ! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:30, 19 अक्टूबर 2013 का अवतरण
ले लिया
पड़तां ही छांट
पग
धरती री गोदी में सूतो
बीज,
आग्यो
सिरजन रो खिण,
कोनी ढबै अबै
कठेई बीच में
जठै तांई बण‘र
पाछो बीज
नहीं कर देसी
आप रै आपै नै
बिसरजण !