Last modified on 27 फ़रवरी 2011, at 01:58

हवा चली/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:58, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देहरी से
आँगन तक तपस पली ।
जाने कौन देश की
हवा चली ।
 
पियराया
घर का तुलसी बिरवा
मूँठ मार
हँसती जादुई हवा
झुलसी
बगिया की हर एक कली

पल भर को
चैन नहीं कमरे में
बन्द हुए
हम अपने पिंजरें में,
जाएँ किधर
न दिखती कहीं गली ।

मौसम ने
फेरा जादू टोना,
आशंकित है
घर का हर कोना,
ईंट-ईंट
दिखती है छली-छली ।