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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 18
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जो पै रहनि रामसों नाहीं।
तौ नर खग कूकर सम बृथा जियत जग माहीं।।
काम, क्रोध, मद, लोभ, नींद, भय, भूक, प्यास सबहीके।
मनुज देह सुर-साधु सराहत, सो सनेह सिय-पीके।।
सुर, सुजान, सुपूत, सुलच्छन गनियत गुन गरूआई।
बिनु हरिभजन इँदारूनके फल तजत नहीं करूआई ।
कीरति कुल करतूति, भूति भलि, सील सरूप सलोने ।
तुलसी प्रभु अनुराग-रहित जस सालन साग अलोने।