भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब अगर आओ तो / जावेद अख़्तर

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 16:36, 14 जून 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार:जावेद अख़्तर


~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना

सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं

दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं

ये हँसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं

चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं

तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई

मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई

तुम कांई रस्‍म निभाने के लिए मत आना