Last modified on 14 मार्च 2011, at 21:30

काम चले अमरीका का / हबीब जालिब

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 14 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नाम चले हरनामदास का काम चले अमरीका का
मूरख इस कोशिश में हैं सूरज न ढले अमरीका का

निर्धन की आँखों में आँसू आज भी है और कल भी थे
बिरला के घर दीवाली है तेल जले अमरीका का

दुनिया भर के मज़लूमों ने भेद ये सारा जान लिया
आज है डेरा ज़रदारों के साए तले अमरीका का

काम है उसका सौदेबाज़ी सारा ज़माना जाने है
इसीलिए तो मुझको प्यारे नाम खले अमरीका का

ग़ैर के बलबूते पर जीना मर्दों वाली बात नहीं
बात तो जब है ऐ ‘जालिब’ एहसान तले अमरीका का