भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिन्दी कविता में मुक्तिबोध / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण
भोजन के वक़्त
गस्सा चबाते हुए
दाँतों के बीच
जैसे महसूस हो किरकिरी
वैसे हैं मुक्तिबोध
हिन्दी कविता में
(1980 में रचित)