भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कम्पनी बाग़ / कीर्ति चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:20, 5 मई 2011 का अवतरण ("कम्पनी बाग़ / कीर्ति चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।
लान में उगाई तरतीबवार घास है ।
इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है ।
आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है ।
उगे की सुरक्षा ही माली को भार है ।
लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है ।
दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है ।
भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है ।
शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है ।