उन्हें शिकायत है शायद
कि बहुत-बहुत दिनों से मैंने
कुछ कहा नहीं
कुछ सुना नहीं…
बहुत कम शब्द
दरअसल ऐसे थे
जो मेरी बात कह पाते
बहुत कम कहा ऐसा था
जो हम सुन पाते
इस पृथ्वी पर
बहुत कम जगह ऐसी थी
जहां ये कहा और सुना
एक साथ रह पाते
एक-दूसरे को सह पाते
अगर सचमुच हम कह पाते
तो बस एक बंजर-सा
रेगिस्तान था फैला हुआ
पूरे वितान पर
अगर वो सचमुच समझ पाते
तो न कोई गम था वहां
और न कोई खुशी थी शायद
बस एक पल था
जिसमें पूरा का पूरा
एक युग था
एक शून्य था केवल
जिसमें पूरा का पूरा
एक जहां था मुकम्मल
समाया हुआ
इसीलिए तो शायद
वहां न कोई शब्द था
और न था कोई स्वर…