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पहाड़ / मंगलेश डबराल

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पहाड़ पर चढ़ते हुए

तुम्हारी साँस फूल जाती है

आवाज़ भर्राने लगती है

तुम्हारा क़द भी घिसने लगता है


पहाड़ तब भी है जब तुम नही हो ।


(रचनाकाल :1975)