भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता / मंगलेश डबराल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 24 जून 2009 का अवतरण
कविता दिन-भर थकान जैसी थी
और रात में नींद की तरह
सुबह पूछती हुई :
क्या तुमने खाना खाया रात को ?
(रचनाकाल : 1978)