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राजा और हम / हरे प्रकाश उपाध्याय

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अँधेरे में
भूख से दर्द और दुख से बिलबिलाते
हम दवा औ रोटी खोजते रहते हैं
राजा अपनी मँद खोजता रहता है

जेठ की चिलचिलाती धूप में हम
धूल पसीने से गुँथे
खनते रहते हैं कुआँ
राजा लाठी में सरसों तेल पिलाता रहता है

आरिष में काँपते-थरथराते
हम लेटेते हैं खेत की मेड़ पर
और बचाते हैं पानी
राजा खून की नदी बहाता रहता है

हमारे बच्चे अक्सर
बीमार रहते हैं डगमग करते हैं
हम खोजते हैं बकरी का दूध
राजा श्वानों को खीर खिलाता रहता है

हम गीत प्रीत का गाना चाहते हैं
मिलना और बतियाना चाहते हैं
भेद भूलकर हँसना और हँसाना चाहते हैं
राजा क्रोध में पागल बस बैंड बजाता रहता है