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मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता / गुलाब खंडेलवाल


मुँह खोलके हमसे जो मिलते न बना होता
कुछ तुमने निगाहों से कह भी तो दिया होता

कोई न अगर दिल के परदे में छिपा होता
यों किसने ख़यालों को रंगीन किया होता

क्या हमसे छिपी रहती जो बात थी उस दिल में
परदा तो मगर अपनी आँखों से हटा होता!

राहें थी अलग तो क्या, हम मिल भी कभी जाते!
कुछ तुमने कहा होता, कुछ हमने कहा होता!

जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई नज़रों से
क्यों रूठके यों कोई दुनिया से गया होता

इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमींसे है
होते न अगर हम तो क्या इनका हुआ होता!

वैसे तो 'गुलाब' उनका इस बाग़ पे कब्ज़ा है
हम देखते, ख़ुशबू को रुकने को कहा होता