भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनाम गंध (हाइकु) / जगदीश व्योम
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 4 जून 2012 का अवतरण
( हाइकु )
अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।
देवता नहीं
आदमी बने रहो
यही बहुत ।