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ऐसी चहकी चिड़िया / अवनीश सिंह चौहान

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दिन भर फ़ोन धरे कानों पर
ये जाने क्या-क्या बतियाए
ऐसी चहकी चिड़िया घर की
गूँजें दूर देश तक जाएँ

बात-बात पर प्यार जताए
जरा देर में ख़ुद चिढ़ जाए
अपनी-उनकी, उनकी-अपनी
जाने कितनी कथा सुनाए

उतने बोल सुनाती केवल
जितना दिन भर में जी पाए

बातें करती घर आँगन की
करती अपने पिछवारे की
क्या खाया क्या पहना तूने
होती बात थके-हारे की

उतनी ही बातें करती, बस
जितनी यादों में आ पाए

ढीली-अण्टी कभी न करती
‘मिस कॉलों’ से काम चलाए
‘कॉल’ उधर से आ जाने पर
तरह-तरह की बात बनाए

‘टाइम पास’ किया करने को
नई कथा के बिम्ब रचाए

इसे फँसाती, उसे रिझाती
झीने-झीने जाल बिछाती
मीठे बोलों से भरमाकर
अँधियारेपन में धकियाती

जिसको चाहे उसे उठाती
मन-माफ़िक सपने दिखलाए