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प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली / अज्ञेय

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प्राण तुम्हारी पदरज फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह धूली!

आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू ली!

वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!