Last modified on 19 दिसम्बर 2011, at 11:36

दफ़्तर के बाद-३ / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:36, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

टुकड़े-टुकड़े,
आ-आ कर जुड़े
आदमक़द हो गए
फिर हम
निचुड़े-निचुड़े
टुकड़े-टुकड़े ।

सीधी कर झुकी कमर
हाथ-पाँव फैलाए
छोड़ी कुर्सी
मृत दिन की चिता जला
दृष्टि घुमाई, तोड़ी
मातमपुर्सी

मुँह से तारीख़ नोंच कर
कहकहे उड़े
आदमक़द हो गए
फिर हम
सिकुड़े-सिकुड़े
टुकड़े-टुकड़े...