भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुदर्शन फ़ाकिर / परिचय

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:36, 2 मार्च 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुदर्शन फ़ाकिर

जन्म

1935


उपनाम जालन्धर जन्म स्थान जालन्धर सुदर्शन फ़ाकिर-एक दर्द भरा शायर अब जहाँ को अलविदा कह गया है |१८ फरवरी ‘०८ की रात के आग़ोश में उन्होंने हमेशा के लिए पनाह ले ली |वो सोच जो ज़िन्दग़ी, इश्क , दर्दो-ग़म को इक अलग नज़रिये से ग़ज़लों के माध्यम से पेश करती थी, वह सोच सदा के लिये सो गई |बेग़म अख़्तर की गाई हुई इनकी यह ग़ज़ल” इश्क में ग़ैरते जज़्बात ने रोने न दिया”–किस के दिल को नहीं छू गई? या फिर “यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो|भले छीनलो मुझसे मेरी जवानी, मग़र मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन वो क़ाग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी” –जन-जन को इस क़लाम ने बचपन की यादों से सरोबार कर दिया |इनके काँलेज के साथी जगजीत सिह ने जब इनकी यह नज्म गाई, तो दोनों ही इससे मशहूर हो गए |सालों से सुनते आ रहे, गणतंत्र दिवस पर एन. सी. सी.के बैंड की धुन” हम सब भारतीय हैं” यह भी फ़ाक़िर की रचना है |इससे पूर्व जवानी में फ़ाकिर आल इंडिया रेडियो जलंधर पर ड्रामा एवम ग़ज़लों के साथ व्यस्त रहे |फिर जब एक बार मुम्बई की ओर रुख़ किया तो ये एच.एम वी के साथ ता उम्र के लिए जुड़ गए |

बेग़म अख़्तर ने जब कहा कि अब मैं फ़ाक़िर को ही गाऊंगी,तो होनी को क्या कहें, वे इनकी सिर्फ़ पाँच ग़ज़लों को ही अपनी आवाज़ दे सकीं थीं कि वे इस जहान से चलता कर गईं |हृदय से बेहद जज़्बाती फ़ाकिर अपनी अनख़, अपने आत्म सम्मान को बनाए रखने के कारण कभी किसी से काम माँगने नहीं गए |

संवाद और गीत

वैसे उन्होंने फिल्म ‘दूरियाँ, प्रेम अगन और यलग़ार” के संवाद और गीत लिखे थे | ये काफ़ी लोकप्रिय भी हुए थे |हर हिन्दू की पसंद कैसेट’ हे राम’ भी फ़ाक़िर की रचना है |इसने तो इन्हें अमर कर दिया है |संयोग ही कहिए कि जिस शव-यान में इनकी शव-यात्रा हो रही थी , उसमें भी यही ‘हे राम’ की धुन बज रही थी |सादगी से जीवन बिताते हुए वे जाम का सहारा लेकर अपने दर्दो-ग़म को एक नया जामा पहनाते रहे |

तेहत्तर वर्ष कि उम्र में भी वे मस्त थे |लेकिन दुनिया से अलग- थलग, इक ख़ामोशी से चेहरा ढ़ाँके हुए |फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ फ़ाकिर को बहुत बड़ा शायर मानते थे | ‘द लेटेस्ट’ में जगजीतसिहं ने फ़ाकिर को गाया है, और आगे भी वे उन्हें गाएंगे—-पर उसे सुनने को ख़ुद फ़ाकिर नही होंगे |इन्हीं चदं अशआर से उन्हें श्रद्धाँजली देती हूं| उन्हें उनके चाहनेवालों का सदा के लिए सलाम !!!!

पुरस्कार

संपादन

अनुवाद

सम्पर्क

निवेदन

यदि आपके पास अन्य विवरण् उपलब्ध है तो कृपया कविता कोश टीम को भेजें