भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विज्ञापन की चकाचौंध / अवनीश सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:49, 30 अक्टूबर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो ध्यान से
कहता कोई
विज्ञापन के पर्चों से

हम जिसका निर्माण करेंगे
तेरी वही जरूरत होगी
जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा
तस-तस कपि की मूरत होगी

भस उड़ती हो
आँख भरी हो
लेकिन डर मत मिर्चों से

हमें न मंहगाई की चिंता
नहीं कि तुम हो भूखे-प्यासे
तुमको मतलब है चीजों से
मतलब हमको है पैसा से

पूरी तुम बाज़ार उठा लो
उबर न पाओ खर्चों से

बेटा, बेटी औ' पत्नी की
मांगों की आपूर्ति करोगे
चकाचोंध से विज्ञापन की
तुम सब आपस में झगड़ोगे

कार पड़ोसी के घर आई
बच न सकोगे चर्चों से