7-मेरे आँगन 
मेरे आँगन 
उतरी सोनपरी
लिये हाथ में
वह कनकछरी
अर्धमुद्रित/अधमुँदी-सी
उसकी हैं पलकें
अधरों पर 
मधुघट छलके
पाटल पग 
हैं जादू-भरे डग
मुदित मन
हो उठा सारा जग
नत काँधों पे
बिखरी हैं अलकें
वो आई तो 
आँगन भी चहका
खुशबू फैली
हर कोना महका
देखे दुनिया
बाजी थी पैंजनियाँ
ठुमक चली
ज्यों नदिया में तरी
सबकी सोनपरी
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8-गीली चादर 
दु;ख में ओढ़ी
थे रोए अकेले में
सुख में छोड़ी 
भटके  थे मेले में
नहीं समेटी 
सिर सदा  लपेटी
अनुतापों की 
भारी भरकम ये
गीली चादर ।
मीरा ने ओढ़ी 
था पिया हलाहल
हार न मानी,
ओढ़ कबीरा
लेकर  इकतारा
लगे थे गाने-
ढाई आखर प्रेम का 
काटें बन्धन
किया मन चन्दन
शुभ कर्मों से ,
है घट-घट वासी  
वो अविनाशी
रमा कण -कण में
कहीं न ढूँढ़ो
ढूँढो केवल उसे 
सच्चे मन में
वो मिले न वन में 
नहीं मिलता
 तीरथ के जल में
कपटी जीवन में
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