भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन
हाँ, एक दिन
वे खड़े होकर पूछेंगे :
कौन-सा रास्ता
इस नरक के बाहर जाता है
एक दिन
वे अपनी मज़बूत टांगों पर
खड़े होकर कहेंगे :
हम जा रहे हैं
एक दिन
वे तुम्हारा तख़्त
उठा कर पलट देंगे
और तुम उन्हें रोक नहीं सकोगे

(रचनाकाल : 1977)