Last modified on 22 अक्टूबर 2009, at 15:18

चरन कमल बंदौ हरिराई / सूरदास

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 22 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चरन कमल बंदौ हरिराई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥१॥
बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई ।
‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥२॥