भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुण्य फलीभूत हुआ / अमरनाथ श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया
सोने की जीभ मिली
स्वाद तो गया

छाया के आदी हैं गमलों के पौधे
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे
अपना जड़ भूल गई
द्वार की जया

हवा और पानी का अनुकूलन इतना
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना
अपनी सुविधा से है
आँख में दया

मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा
मुझसे तो ऊँची है
डाल पर बया