यहाँ न पल्लव वन में मर्मर,  
यहाँ न मधु विहगों में गुंजन,  
जीवन का संगीत बन रहा  
यहाँ अतृप्त हृदय का रोदन !  
यहाँ नहीं शब्दों में बँधती  
आदर्शों की प्रतिमा जीवित,  
यहाँ व्यर्थ है चित्र गीत में 
सुंदरता को करना संचित !  
यहाँ धरा का मुख कुरूप है,  
कुत्सित गर्हित जन का जीवन,  
सुंदरता का मूल्य वहाँ क्या  
जहाँ उदर है क्षुब्ध, नग्न तन ?-  
जहाँ दैन्य जर्जर असंख्य जन  
पशु-जघन्य क्षण करते यापन,  
कीड़ों-से रेंगते मनुज शिशु,  
जहाँ अकाल वृद्ध है यौवन !  
सुलभ यहाँ रे कवि को जग में 
युग का नहीं सत्य शिव सुंदर,  
कँप कँप उठते उसके उर की  
व्यथा विमूर्छित वीणा के स्वर !