भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीप तेरा दामिनी! / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीप तेरा दामिनी
चपल चितवन-ताल पर बुझ बुझ जला री मानिनी!

गन्धवाही गहन कुन्तल,
तूल से मृदु धूम-श्यामल,
घुल रही इनमें अमा ले आज पावस-यामिनी!

इन्द्रधनुषी चीर हिल हिल,
छाँह सा मिल धूप सा खिल,
पुलक से भर भर चला नभ की समाधि विरागिनी!

कर गई जब दृष्टि उन्मन,
तरल सोने में घुले कण,
छू गई क्षण भर धरा-नभ सजल दीपक-रागिनी!

तोलते कुरबक सलिल-धन,
कण्टकित है नीप का तन,
उड़ चली बक-पाँत तेरी चरण-ध्वनि-अनुसारिणी!

कर न तू मंजीर का स्वन,
अलस पग धर सँभल गिन गिन,
है अभी झपकी सजनि सुधि क्रन्दनकारिणी!