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बीते दिन / कैलाश गौतम
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बीते दिन
मैं भूल नहीं पाता,
था कोई जो
मुझे देखकर
मई जून की तेज़ धूप में
मेरे आगे हो जाता था
बादल, पेड़, खुला छाता ।
मन से जुड़ता
चुटकी लेता
ताने कसता था,
खिल उठता था ताल
चाँद पानी में हँसता था
मैं उसकी आँखों में सोता
वह मेरी साँसों में गाता ।
कैसे-कैसे शहर और
कैसी यात्राएँ हैं,
तेज़ धार में हाथ थामकर
साथ नहाए हैं
कितना सहज समर्पण था वह
कैसा था स्वाभाविक नाता
कैसी-कैसी सीमाएँ थीं
कैसे घेरे थे,
शामें थीं रसवंत और
जीवंत सबेरे थे
तन जैसे लहराता रहता
रस जैसे मौसम बरसाता ।